जगरगुण्डा में तेरह साल के अंधेरे के बाद फिर पंहुची शिक्षा की रोशनी

विध्वंश के बाद पुननिर्माण की कहानी गढ़ रहा है जगरगुण्डा

सुकमा:

सुकमा जिले का घोर नक्सल प्रभावित गाँव जगरगुण्डा। एक ऐसा गांव, जिसने सलवाजुडूम के दौरान सर्वाधिक हिंसा का दंश झेला। एक ऐसा दंश जिसने जगरगुण्डा ही नहीं बल्कि इसके आसपास के चैदह गांवों की एक पूरी पीढ़ी को शिक्षा से वंचित कर दिया, लेकिन अब यहां की आबोहवा बदल रही है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की सरकार बनते ही अप्रैल 2019 से यहां पुननिर्माण की प्रक्रिया शुरू हुई और जून माह में उन स्कूल भवनों का पुननिर्माण कर दिया गया , जिसे आज से 13 साल पहले नक्सलियों ने ध्वस्त कर दिया था। 24 जून से यहां प्राइमरी से लेकर बारहवीं तक बच्चों का प्रवेश प्रारंभ हो गया है। लगभग 80 बच्चों ने प्रवेश ले लिया है। यानी तेरह साल के अंधरे के बाद शिक्षा की लौ फिर जल उठी है।
जगरगुण्डा की पिछले तेरह साल की कहानी किसी हॉरर फिल्म की कहानी से कम नहीं है। जब सलवाजुडूम शुरू हुआ तो नक्सलियों ने इस आंदोलन से जुड़े अनेक ग्रामीणों की निर्मम हत्या कर दी। जो बच गए थे, उन्हें गांव छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया गया। जगरगुण्डा आश्रम और शालाओं के एक बड़े कैंपस को तहस नहस कर दिया। आज भी स्कूलों की खंडर दीवारों पर सलवाजुडूम विरोधी नारे और जुडुम समर्थकों को चेतावनी लिखी है। जब स्कूल भवन तोड़ दिए गए तो बच्चे मजबूरी में 55 किलोमीटर दूर दोरनापाल के आश्रम में पढ़ने चले गए। यहां स्कूल फिर खुल जाने के बाद दोरनापाल में पढ़ रहे बच्चों को वापस लाया जा रहा है। अब तक पहली से बारहवीं तक 80 बच्चे प्रवेश ले चुके है।

तेलम हड़मा, वर्षा गांव आकर खुश हैं
कक्षा छठवीं के तेलम हड़मा और कुमारी वर्षा जगरगुण्डा में स्कूल नहीं होने के कारण पहली से दोरनापाल के आश्रम में रहकर पढ़ाई करनी पड़ी। इन्हें भी दूसरे बच्चों की तरह दोरनापाल से जगरगुण्डा शिफ्ट किया गया है। दोनों अपने गांव आकर खुश हैं। तेलम हड्मा ने बताया कि वह बड़ा होकर टीचर बनना चाहता है, जबकि कुमारी वर्षा डॉक्टर बनना चाहती है।

गांव में उत्साह का माहौल
जगरगुण्डा में खंडर हो चुके भवन फिर से खड़े हो गए हैं। रंगरोगन के साथ शिक्षा का मंदिर फिर तैयार हो चुका है। बच्चों के शोरगुल से परिसर गुंजायमान हो रहा है तो गांव के लोग भी खुश हैं। श्री बलराम मांझी ने बताया कि सब कुछ तबाह हो गया था। अब स्कूल खुल जाने से गांव की रौनक फि लौट गई है। श्री दुर्जन सिंह नाग ने बताया कि गांव के सभी लोग खुश हैं। गांव के बच्चे अब गांव में ही पढ़ेंगे। उन्होंने बताया कि गांव में स्कूल नहीं होने के कारण मेरे बच्चे भी दोरनापाल में पढ़े हैं। बड़ा बेटा काॅलेज में पहुंच गया है। छोटी बेटी प्रतिभा इस साल दोरनापाल से पांचवी पास की है। गांव में स्कूल खुल जाने से वह इस साल बेटी को जगरगुण्डा स्कूल में भर्ती करा दिया है। श्री अप्पाराव ने बताया गांव स्कूल खुल गया है। पानी भी मिल रहा है। अब दोरनापाल तक सड़क की दरकार है।


अस्पताल और उप तहसील जल्द शुरू होगा
जगरगुंडा में 5 बिस्तरों वाला अस्पताल जल्द खुलेगा। इसका भवन बनकर तैयार है। इसी तरह तेरह साल पहले बंद हो चुके उप तहसील कार्यालय भी फिर से शरू होगा। सुकमा कलेक्टर श्री चंदन कुमार ने बताया कि उप तहसील के लिये आदेश जारी कर दिए गए हैं। एक सप्ताह में कार्यालय शुरू हो जाएगा। सप्ताह में तीन दिन वंहा तहसीलदार बैठेंगे। उन्होंने बताया कि धीरे-धीरे दूसरे सरकारी संस्थानों को भी जगरगुण्डा में शिफ्ट किया जाएगा।


बिजली से भी जल्द रौशन होगा जगरगुण्डा
लगभग तीन हजार की आबादी वाला गांव बिजली नहीं होने के कारण तेरह सालों से अंधेरे में है। सक्षम लोग सौर ऊर्जा से काम चला रहे हैं। ऐसा नहीं है कि पहले इस गांव में बिजली नहीं थी, तेरह साल पहले नक्सलियों ने अरनपुर से जगरगुण्डा तक के बिजली के सारे खम्बों और ट्राॅसफार्मर को ध्वस्त कर दिए थे, तब से यह गांव अंधेरे में डूबा था, लेकिन अब गांव तक फिर से बिजली की लाईन आ गई है, केवल घरों में कनेक्शन देना बाकी है।


राहत शिविर में भी राहत
वर्ष 2006 में सलवा जुडूम के बाद जगरगुण्डा के आसपास के 14 गांवों के लगभग 2200 लोगो को यहां राहत शिविर में रखा गया था। पूरा गांव चारों ओर से कटीले तारांे से घिरा है। गांव में प्रवेश के दो ही द्वार है, जिसमें जवानों का पहरा रहता है। पिछले तेरह सालों में यहां लोग खुली जेल में रहने मजबूर थे, लेकिन शिविर की हालात भी सुधर रहे हैं। माहौल में सुधार होने के बाद बहुत से ग्रामीण अपने गांव लौट चुके हैं। कुछ ऐसे परिवार हैं, जो दिन में अपने खेतों में काम करने के बाद शाम को फिर शिविर में लौट आते हैं।

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