तेलीबांधा तालाब को देशभर के लिए मॉडल मान लिया गया | जानिए वजह

रायपुर:

राजधानी के तेलीबांधा तालाब को पिछले तीन माह में लगातार साफ होते पानी और खत्म हो रही बदबू की वजह से देशभर के लिए मॉडल मान लिया गया है। यहां जो फार्मूला सफाई के लिए लागू किया गया, उसकी चर्चा दिल्ली तक हो रही है। दिल्ली से आई केंद्रीय जहाजरानी मंत्रालय के अफसरों की टीम ने इस तालाब को साफ करने के लिए इस्तेमाल की गई जैविक तकनीक और इसके नतीजों को बेहतर बताया और यह भी कहा गया कि शहरी इलाकों के तालाब साफ करने की यह तकनीक देशभर के लिए जरूरत बन सकती है।स्मार्ट सिटी के अफसरों ने बताया कि तेलीबांधा तालाब को साफ करने के लिए दो तरीके अपनाए गए हैं। पहला, तालाब के नजदीक बड़ा टैंक बनाया गया है। अासपास का गंदा पानी पहले इस टैंक में गिरता है और साफ किया जाता है। फिर इसे तालाब में भेज दिया जाता है।अर्थात, गंदा पानी तालाब में नहीं जा रहा है। दूसरा, जैविक तरीकों का इस्तेमाल किया गया है। तालाब में गंदगी खाने वाले जीवाणु छोड़े गए हैं, जो पानी को साफ कर रहे हैं। राजहंस भी छोड़े गए हैं, जिनका मुख्य भोजन तालाब को गंदा करने वाले जीव और वनस्पतियां ही हैं। गौरतलब है, तालाब में सीवेज ईटिंग माइक्रोब्स पहले छोड़े गए थे। इसके तकरीबन ढाई माह बाद यानी कुछ दिन पहले ही राजहंसों को यहां लाया गया। इनके लिए तालाब के बीच में काॅटेज जैसा पिंजरा बनाया गया है। यहां के वातावरण से अभ्यस्त होने के बाद इन्हें तालाब में उतारा गया और ये सुबह-शाम तालाब में अच्छी संख्या में नजर आ रहे हैं।

उपलब्धि : गंदगी खाने वाले बैक्टीरिया, 46 राजहंस और तैरते हुए छोटे गार्डनों के कारण हुई सफाई

तेलीबांधा तालाब में भेल ने गंदगी खाने वाले जीवाणुओं (सीवेज-इटिंग माइक्रोब्स) को छोड़ा है। सीवेज-इटिंग माइक्रोब्स का इस्तेमाल अभी गंगा की सफाई में किया जा रहा है। यही नहीं, बड़े पैमाने पर जैविक उपचार (बायॉरेमेडिएशन) कर कुछ हद तक पानी की गुणवत्ता सुधरी है। ये माइक्रोब्स पानी में मौजूद प्रदूषकों जैसे तेल और ऑर्गैनिक मैटर को खा रहे हैं। सीवेज के ट्रीटमेंट में भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। खास बात यह है कि ये बैक्टीरिया किसी प्रकार की गंध नहीं छोड़ते हैं। इस प्रक्रिया में पानी से आ रही बदबू भी घटी है और जहरीले रसायन तथा घातक धातुओं में भी कमी अाई है। यही नहीं, स्मार्ट सिटी ने यहां पर 46 राजहंस छोड़े हैं। ये राजहंस पानी में मौजूद गंदगी को खा रहे हैं और इससे भी काफी सफाई हो रही है। 

तेलीबांधा जाकर देखी तकनीक :

इस कोशिश की चर्चा दिल्ली तक है, इसलिए केंद्रीय जहाजरानी मंत्रालय में संयुक्त सचिव रविंद्र अग्रवाल शनिवार को अपनी टीम के साथ तेलीबांधा पहुंचे और इन उपायों का जायजा लिया। यह टीम केंद्र सरकार के जलशक्ति अभियान के तहत रायपुर चल रहे अन्य प्रोजेक्ट्स के निरीक्षण के लिए भी अाई है। संयुक्त सचिव ने  तेलीबांधा तालाब में लगे सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट के जरिए हो रहे जल शुद्धिकरण, जल संरक्षण और भूग्रहीय जल स्तर बढ़ाने की कोशिश को अादर्श माना और इसे देशभर में एक माॅडल के रूप में चिन्हित किया है। दिल्ली के अफसर को भ्रमण के दौरान स्मार्ट सिटी के प्रबंधक प्रमोद भास्कर ने नालों से बहकर आने वाले पानी के शुद्धिकरण की प्रक्रिया बताई।  उल्लेखनीय है कि इस तरह का एसटीपी बूढ़ातालाब के पास भी स्थापित किया जा रहा है।

यहां भी भोपाल के बड़े तालाब को साफ करनेवाली बायो-रीमेडिएशन तकनीक :

तेलीबांधा तालाब प्रदेश का पहला ऐसा तालाब है, जिसके पानी को शुद्ध करने के लिए जैविक तकनीक का उपयोग किया गया है। यहां वाटर ट्रीटमेंट प्लांट भी लगाया गया है। विशेषज्ञों के अनुसार इस तालाब के पानी की सफाई बायो-रीमेडिएशन तरीके से की जा रही है। इसी तकनीक से भोपाल के बड़े तालाब को भी साफ किया गया है। भोपाल हेवी इलेक्ट्रिकल लिमिटेड (भेल) ने तेलीबांधा तालाब में इस तकनीक का इस्तेमाल तीन माह पहले शुरू किया। इसका नतीजा ये है कि इस तालाब के पानी से अब बिलकुल बदबू नहीं आ रही है, जबकि जलस्तर अब तक कम ही है।

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