70 साल बाद भारत में दौड़े चीते, जानिए कब शुरू हुई चीतों को लाने की कवायद, इतना खर्च कर रही है सरकार

नई दिल्ली: भारत में चीतों का इंतजार खत्म हो चुका है। करीब 11 घंटे का सफर करने के बाद चीते भारत पहुंच चुके हैं। पांच मादा और तीन नर चीतों को लेकर विमान ने नामीबिया की राजधानी होसिया से उड़ान भरी। मॉडिफाइड बोइंग 747 विमान से लाए गए इन चीतों में रेडियो कॉलर लगे हुए हैं। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इनमें से तीन चीतों को कूनो में बनाए गए विशेष बाड़ों में छोड़ देंगे। 

दो नर चीतों की उम्र साढ़े पांच साल है। दोनों भाई हैं। पांच मादा चीतों में एक दो साल, एक ढाई साल, एक तीन से चार साल तो दो पांच-पांच साल की हैं। 

नामीबिया से भारत लाए गए चीतों को प्रधानमंत्री मोदी ने कूनो नेशनल पार्क में बॉक्स खोलकर तीन चीतों को क्वारंटीन बाड़े में छोड़ा। बाद में मोदी ने इनकी तस्वीरें भी ली। इस दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह भी साथ थे। 

नामीबिया से लाए जा रहे आठ चीते शनिवार को भारत आ गए। देश में 1952 में चीतों के विलुप्त होने की घोषणा की गई थी। करीब 70 साल बाद देश में चीते दिखाई देंगे।

भारत में इन्हें कैसे रखा जाएगा?
कूनो पहुंचने के बाद ये चीते 30 दिन तक क्वॉरंटीन रहेंगे। इस दौरान इन्हें बाड़े के अंदर रखा जाएगा। बाड़े में उनके स्वास्थ्य और अन्य गतिविधियों पर नजर रखी जाएगी। सबकुछ ठीक रहा तो तीस दिन बाद सभी चीतों को जंगल में छोड़ दिया जाएगा।

चीतों के लिए कूनो नेशनल पार्क को ही क्यों चुना गया?
कूनो नेशनल पार्क को करीब एक दशक पहले गिर के एशियाई शेरों को लाने के लिए तैयार किया गया था। हालांकि, गिर से इन शेरों को कूनो नहीं लाया जा सका। स्थानांतरण की सारी तैयारियां यहां हुई थीं। शेर के शिकार के लिए संभल, चीतल जैसे जानवरों को भी कूनों में स्थानांतरित किया गया था। शेर के लिए की गई तैयारी अब चीतों के स्थानांतरण के वक्त काम आएंगी। कूनो के अलावा सरकार ने मध्य प्रदेश के ही नौरादेही वन्य अभयारण्य, राजस्थान में भैसरोडगढ़ वन्यजीव परिसर और शाहगढ़ में भी वैज्ञानिक आकलन कराया था। आकलन के बाद कूनो को चीतों के स्थानांतरण के लिए चुना गया।

क्या इसके बाद और भी चीते भारत लाए जाने हैं?
अभी ये चीते नामीबिया से लाए गए। दक्षिण अफ्रीका से भी चीता लाने के लिए सरकार की बात लगभग पूरी हो चुकी है। जल्द ही यहां से भी चीते लाए जाएंगे। सरकार की योजना अगले पांच साल तक अफ्रीका के अलग-अलग देशों से चीते लाकर हिन्दुस्तान में बसाने की है।


चीतों को भारत लाने की कहानी कब शुरू हुई?

ये पहली बार नहीं है जब देश में चीतों को बसाने की कोशिश हो रही है। आजादी के पांच साल बाद 1952 में देश में चीतों के विलुप्त होने का एलान किया गया। उसी वक्त सरकार ने चीतों के संरक्षण के लिए विशेष प्रयास करने का एलान किया। 1970 के दशक में ईरान से एशियाई शेरों के बदले एशियाई चीतों को भारत लाने के लिए बात शुरू हुई। ईरान में चीतों को कम आबादी और अफ्रीकी चीतों और ईरानी चीतों में समानता को देखते हुए तय किया गया कि अफ्रीकी चीतों को भारत लाया जाएगा।

2009 में देश में चीतों को लाने की कोशिशें नए सिरे से शुरू हईं। इसके लिए ‘अफ्रीकन चीता इंट्रोडक्शन प्रोजेक्ट इन इंडिया’ प्रोजेक्ट शुरू किया गया। 2010 से 2012 के दौरान देश के दस वन्य अभयारण्यों का सर्वेक्षण किया गया। इसके बाद मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क को चीतों के लिए चयनित किया गया।

इस पूरी कवायद में कितना खर्च आया?
फरवरी 2022 में सरकार ने लोकसभा में जानकारी दी कि चीता प्रोजेक्ट के लिए 2021-22 से 2025-26 तक के लिए 38.70 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया है। इन चीतों को इसी प्रोजेक्ट के तहत भारत लाया जा रहा है।

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