महात्मा गांधी की परपोती को धोखाधड़ी और जालसाजी के मामले में मिली सजा, 7 साल अब जेल में बिताएंगी, जानिए क्या है मामला

नई दिल्ली: महात्मा गांधी की परपोती को धोखाधड़ी और जालसाजी के मामले में सजा सुनाई गई है। 56 साल की आशीष लता रामगोबिन पर आरोप है कि उन्होंने 60 लाख रुपये से अधिक की धोखाधड़ी की है। उन्हें दक्षिण अफ्रीका की डरबन कोर्ट ने इस मामले में सात साल की सजा सुनाई है।

गौरतलब है कि लता रामगोबिन मशहूर एक्टिविस्ट इला गांधी और दिवंगत मेवा रामगोबिंद की बेटी हैं। लता पर आरोप है कि उन्होंने बिजनेसमैन एसआर महाराज के साथ फ्रॉड किया है। उन्हें डरबन स्पेशलाइज्ड कमर्शियल क्राइम कोर्ट द्वारा सजा की अपील करने की अनुमति देने से भी इंकार कर दिया गया है।

आशीष लता रामगोबिन पर आरोप है कि एस आर महाराज ने उन्हें भारत में मौजूद एक कंसाइनमेंट के लिए आयात और सीमा शुल्क के तौर पर लगभग 62 लाख रूपए एडवांस में दिए गए थे। आशीष लता रामगोबिन ने उस मुनाफे में महाराज को हिस्सेदारी देने की बात भी कही थी।

साल 2015 में लता रामगोबिन के खिलाफ मामले की सुनवाई शुरू हुई थी तो राष्ट्रीय अभियोजन प्राधिकरण (एनपीए) के ब्रिगेडियर हंगवानी मुलौदजी ने कहा था कि लता ने जाली चालान और दस्तावेज संभावित निवेशकों को प्रदान किए थे। वे इसके सहारे उन्हें ये विश्वास दिलाना चाहती थीं कि भारत से लिनेन के तीन कंटेनर भेजे जा रहे हैं।

उस समय लता रामगोबिन को 50,000 रैंड यानी लगभग 2 लाख 70 हजार रुपये की जमानत पर रिहा किया गया था। सोमवार को सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया कि लता रामगोबिन ने न्यू अफ्रीका अलायंस फुटवियर डिस्ट्रीब्यूटर्स के डायरेक्टर महाराज से अगस्त 2015 में मुलाकात की थी।

महाराज की ये कंपनी कपड़े, लिनेन और जूतों का आयात, निर्माण और बिक्री करती है। महाराज की कंपनी अन्य कंपनियों को प्रॉफिट शेयर के आधार पर फाइनेंस भी प्रदान करती है। लता ने महाराज को बताया था कि उन्होंने दक्षिण अफ्रीकी अस्पताल ग्रुप नेटकेयर के लिए लिनेन के तीन कंटेनर भारत से आयात किए हैं।

एनपीए की प्रवक्ता नताशा कारा ने कोर्ट की सुनवाई के दौरान कहा कि लता ने महाराज को बताया था कि चूंकि उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है, इसलिए उन्हें आयात की लागत और सीमा शुल्क का भुगतान करने में दिक्कतें पेश आ रही हैं और उन्हें बंदरगाह पर माल क्लियर कराने के लिए पैसों की जरूरत है।

लता रामगोबिन की पारिवारिक साख और नेटकेयर दस्तावेजों के कारण, महाराज ने लोन के लिए उनके साथ एक लिखित समझौता कर लिया था और उन्हें 62 लाख की पेमेंट की थी। लता ने भी नेटकेयर चालान और डिलीवरी नोट के सहारे महाराज को बताया था कि पेमेंट हो चुकी है।

हालांकि जब महाराज को पता चला कि ये दस्तावेज जाली थे तो उन्होंने इस मामले में लता पर केस कर दिया। गौरतलब है कि लता एनजीओ इंटरनेशनल सेंटर फॉर नॉन वॉयलेंस की संस्थापक और कार्यकारी निदेशक हैं। लता के अनुसार वे एक एक्टिविस्ट हैं और वे खासतौर पर पर्यावरण, सामाजिक और राजनीतिक मामलों को लेकर सक्रिय हैं।

बता दें कि महात्मा गांधी के कई अन्य वंशज मानवाधिकार कार्यकर्ता रहे हैं। इनमें से लता रामगोबिन के चचेरे भाई कीर्ति मेनन, स्वर्गीय सतीश धुपेलिया और उमा धुपेलिया शामिल हैं। रामगोबिन की मां इला गांधी को विशेष रूप से उनके प्रयासों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है। इला गांधी को भारत और दक्षिण अफ्रीका दोनों ही देशों से राष्ट्रीय सम्मान मिल चुके हैं।

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