”बेबसी का इक समंदर दूर तक फैला हुआ… और कश्ती कागजी पतवार के साये में है”

बिलासपुर: ये तस्वीरें मजदूरों की नहीं बल्कि उन मजबूर इंसानों की है जिन्हें घर तक पहुँचाने का भरोसा सरकार ने दिलाया है, प्रशासन के सरकारी इंतज़ाम की हकीकत किसी से छिपी नहीं है। बस का इंतज़ाम हो रहा है, कब तक होगा बस ये सवाल पूछना मना है। बिलासपुर के हाईटेक बस स्टैंड पर जमा इस भीड़ में बस चेहरे अलग है, दर्द और देह एक दूसरे से कुछ कह देने को बेताब हैं।

दो दिन पहले यहां कुछ पुलिस के अफसरान लाव लश्कर के साथ आये थे, उन्हें कहीं से खबर मिली की मज़दूर सोशल और फिजिकल डिस्टेंसिंग का पालन ठीक से नहीं कर रहे है। कोई साहब पहुंचें, जुबानी जमा खर्च किया और लौट गए। ये बात इसलिए कहनी पड़ रही है की जिस सोशल डिस्टेंसिंग और फिजिकल दुरी के मायने आज 54 दिन से देशभर में नेता-अभिनेता सभी बता-बताकर थक गए उसका पालन उन मजदूरों से करने को कहा जा रहा है जिन्हें पुलिस खुद भेंड़-बकरियों की तरह ट्रकों में लदवाकर अपने जिले की सीमा से बाहर भिजवाकर मुसीबतों से छुटकारा चाहती है। क्यूंकि शासन-प्रशासन के लिए ये मजबूर लोग सिर्फ मुसीबत ही हैं। ये तस्वीरें आज दोपहर की हैं, इस दौरान मैंने हाईटेक बस स्टैंड पर कुछ पुलिस कर्मियों को ड्यूटी करते भी देखा ! सिर्फ ड्यूटी….

”बेबसी का इक समंदर दूर तक फैला हुआ
और कश्ती कागजी पतवार के साये में है”

आर्टिकल एवं तस्वीरें
सत्यप्रकाश पाण्डेय
सीनियर जर्नलिस्ट एवं वाइल्डलाइफ़ फोटोजर्नलिस्ट

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