#Women’s Day : अदम्य साहस और संघर्ष का अप्रतिम उदाहरण है भारतीय स्त्री : लता तिवारी

राजनांदगांव: ‘आजादी के तुरंत बाद भी भारत में महिलाओं की स्थिति बहुत सामान्य नहीं थीं। महिलाएँ सहज नहीं थी। संसाधनों और सुविधाओं का अभाव अपनी जगह था, लेकिन महिलाओं के प्रति समाज का भाव, उन अभावों से बड़ी चुनौती थी।’ उक्त बातें अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर छत्तीसगढ़ जुझारू आंगनबाड़ी कार्यकर्ता एवं सहायिका कल्याण संघ की राजनांदगांव जिला अध्यक्ष लता तिवारी ने कही है।

उन्होंने इस अवसर पर एक बयान जारी करते हुए कहा कि लैंगिक असमानता को लेकर पुराने दौर में भी लोगों ने संघर्ष किया। नारी को समान अवसर और समान अधिकार दिलाने की कोशिशें सदियों से चलती आ रही है। पिछले 100 सालों का इतिहास देखेंगे तो आप पाएंगे कि महिलाएं अपने योगदान से समाज में सुधार लाने के प्रयास लगातार कर रही हैं। इस कड़ी में ज्योतिबा फूले, कस्तूरबा गांधी एवं भारत रत्न इंदिरा गांधी जैसे ढेरों उदाहरण हैं। प्राचीन इतिहास की ओर मुड़ें तो पता चलता है कि हमारी परंपरा में महिलाओं के योगदान की शुरुआत वेदों से होती है। अपाला, घोषा, मुद्रा, साबित्री आदि कई ऐसी उदाहरण हमारे वेदों में दर्ज हैं, जिन्होंने मंत्रों के दर्शन किये। इस धरातल की सबसे पुरानी हमारी भारतीय संस्कृति मूलतः ज्ञान आधारित है, जिसमें शक्तिपूजा का विधान रहा है। आज भी हम स्त्री प्रतीकों एवं देवियों की पूजा कर शत्रु पर विजय पाने की बात करते हैं।

श्रीमती तिवारी ने कहा कि हमारे देश को भारत कहा जाता है लेकिन पूजा भारत माता की की जाती है। हमें चाहिए कि हम महिला दिवस मनाकर केवल रस्म अदायगी न करें। बहुत कुछ किए जाने के बाद भी जो किया जाना है, वह बहुत कुछ है। ऐसा बिल्कुल नहीं है कि संघर्ष पहले नहीं था।

उन्होंने कहा कि स्त्री पहले भी संघर्ष कर रही थी, स्त्री अब भी संघर्ष कर रही है। समय के साथ संघर्ष का स्वरूप परिवर्तित हुआ है। लेकिन हर स्वरूप को महिलाओं ने अंगीकार किया और अपने संघर्ष की बदौलत जीत दर्ज की।

श्रीमती तिवारी ने कहा कि प्रयत्न की ऊँचाई जहाँ बड़ी हो जाती है, वहाँ लक्ष्य को छोटा होने पर विवश होना पड़ता है। भारतीय स्त्री इसका उदाहरण है। उन्होंने कहा कि हमारे इतिहास में महिलाओं को सम्मान दिलाने के लिए पूरा जीवन संघर्ष करते हुए प्रेरणा बनने वाली उदाहरणों की कमी नहीं है। छत्तीसगढ़ की महामहिम राज्यपाल अनुसुइया उइके महिला संघर्ष की बड़ी उदाहरण है। जनजातीय परिवार में जन्म लेकर जीवन की विभिन्न चुनौतियों का सामना करते हुए जीवन के हर पड़ाव को उपलब्धि में तब्दील कर देना आसान नहीं हैं, लेकिन महामहिम अनुसुइया उइके वह उदाहरण हैं जो हम सभी महिलाओं को सकारात्मक संघर्ष की प्रेरणा देते हुए संकेत देती हैं कि मेहनत और संघर्ष ईमानदारी से भरा हो तो हर चुनौती को सफलता में और हर पड़ाव को उपलब्धि में बदला जा सकता है।

उन्होंने कहा कि आज तो कई ऐसे प्रतिष्ठान एवं संस्थाएं हैं, जो महिलाओं के नेतृत्व में सफलतापूर्वक संचालित हो रहे हैं। हालांकि यहां तक का सफर तय करने के लिए महिलाओं को काफी मुश्किलों एवं संघर्षों का सामना करना पड़ा है और महिलाओं को अपने अधिकारों के लिए अभी आगे मीलों लम्बा सफर तय करना है, जो दुर्गम एवं मुश्किल तो है लेकिन महिलाओं ने ही ये साबित किया है कि वो हर कार्य को करने में सक्षम हैं। आज समाज में लैंगिक समानता को प्राथमिकता देने से भी लोगों की सोच में बहुत भारी बदलाव आया है। अधिकारिक तौर पर भी अब नारी को पुरुष से कमतर नहीं आंका जाता। यही कारण है कि महिलाएं पहले से अधिक सशक्त और आत्मनिर्भर हुई हैं। जीवन के हर क्षेत्र में वे पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर मजबूती से खड़ी हैं और आत्मबल, आत्मविश्वास एवं स्वावलंबन से अपनी सभी जिम्मेदारी निभा रही हैं। वर्तमान में महिला को अबला नारी मानना गलत होगा। आज की नारी पढ़-लिखकर सबल एवं स्वतंत्र है। वह अपने अधिकारों के प्रति सजग भी है। आज की नारी अपना स्वयं निर्णय लेती है। छत्तीसगढ़ जुझारू आंगनबाड़ी कार्यकर्ता एवं सहायिका कल्याण संघ की राजनांदगांव जिला अध्यक्ष लता तिवारी ने कहा कि महिला दिवस के अवसर पर हमारी सामूहिक इच्छा होनी चाहिए कि महिलाओं को चाहे घर हो या बाहर हो समाज में वह सम्मान अवश्य ही देना चाहिए जिसका वे हकदार है। इस अवसर उन्होंने छत्तीसगढ़ की समस्त आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, सहायिकाओं, विभागीय मंत्री, विभागीय अधिकारियों के साथ पूरे देश के प्रति अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनाएं व्यक्त की है।

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