कोरोना ने बदल दिया खबरें पढ़ने का माध्यम ; वेब न्यूज़ सब पर भारी

इकराम नवी

कोरोना से मचे बवाल के बीच खबरों को पढ़ने का तरीका भी बदल गया है। वेब एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने प्रिंट को रिप्लेस कर दिया है। यह धीरे धीरे मरते हुए अखबारों की एक अवस्था है जिसे कोरोना महामारी ने तेज कर दिया है. इसी बीच घर पर रह कर हर घटना से अपडेट रहने के लिए लोगो को नई तकनीक को अपनाना मज़बूरी बन चुका है। लोग अपडेट होकर डिजिटल मीडिया के साधनों पर शिफ्ट हो चुके हैं।


पूरे विश्व मे कोविड – 19 के चलते लॉक डाउन लागू है। भारत समेत कई देशों में लॉक डाउन को आगे बढ़ाया गया है। ऐसे में इकोनॉमिक सिनेरियो में बडी नेगेटिविटी व्याप्त है। लोगो की जिंदगी जीने के तरीके में भी बदलाव आ चुका है। मानो पूरी दुनिया ही बदल चुकी है। इन सब बदलावों के बीच कई सकारात्मक पहलू भी दिख रहे हैं। प्रकृतिविदों के लिए यह समय स्वर्णिम काल है। जानकारों का कहना है कि 2020 इसी तरह गुजरेगा। यानी लॉक डाउन हटा भी लिया जाए तो अनदेखे, अनजाने शत्रु का खतरा नित्य मंडराता रहेगा। इन दो महीनों में हर जगह बदलाव आ चुका है। कोरोना से मचे बवाल के बीच खबरों को पढ़ने का तरीका भी बदल गया है। वेब एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने प्रिंट को रिप्लेस कर दिया है। यह धीरे धीरे मरते हुए अखबारों की एक अवस्था है जिसे कोरोना महामारी ने तेज कर दिया है. इसी बीच घर पर रह कर हर घटना से अपडेट रहने के लिए लोगो को नई तकनीक को अपनाना मज़बूरी बन चुका है। लोग अपडेट होकर डिजिटल मीडिया के साधनों पर शिफ्ट हो चुके हैं।

अब यह तो तय है कि खतरा सबसे ज्यादा प्रिंट मीडिया के ऊपर मंडरा रहा है।  कोरोना से मची इस पूरी आपाधापी के बीच मीडिया जगत में भी बड़े बदलाव दर्ज हो चुके है। समाचारों का सशक्त माध्यम एवं विश्वसनीय माना जाने वाला प्रिंट मीडिया अपनी अस्मत बचाने में नाकामयाब साबित हो रहा है। वेब (डिजिटल) मीडिया ने प्रिंट को बड़ा डेंट मार दिया है। ऐसा पहली बार हुआ जब बड़े बड़े प्रिंट मीडिया हाउसेस को पाठकों के बीच विश्वसनीयता की दुहाई देते पूरे पेज के विज्ञापन जारी करने पड़े। और जब यह तरकीब भी काम ना आई तो सरकार पर दबाव से अखबार में संक्रमण न होने की अपील तक जारी करवाई गई। लेकिन इन सब ज़तनों का कोई लाभ नही हुआ। इसके बाद अखबारों को भी लोगो तक पहुचने के लिए डिजिटल मीडिया का सहारा लेना पड़ा। ई पेपर एवं पी डी एफ फाइलों को शेयर किया गया। इसी बीच अखबारों ने ना चाहते हुए भी डिजिटल मीडिया को ही प्रोमोट किया।

अब अंततः आलम यह है कि बड़े पैमाने पर लोगो की अखबार पढ़ने की आदत पिछले 45 दिनों में निकल गई है। क्योंकि ब्रेकिंग न्यूज़ का मोह लोगो के मुंह लग चुका है। रियल टाइम अपडेट्स पड़ने की आदत लग चुकी है। कोई अगले दिन सुबह तक खबरों के लिए इंतेज़ार क्यों करे जब हाथ मे मोबाइल हो। रियल टाइम खबरें वो भी फ्री।

जहां तक ख़बरों की विश्वसनीयता का सवाल है तो यह केवल एक भ्रांति थी कि प्रिंट मीडिया विश्वसनीय माध्यम है। ऐसा कहना इस बिनाह पर लाज़मी है कि अखबार अपनी बड़ी प्रसार संख्या एवं मोटी तन्ख्वाओ का खर्च विज्ञापनों से निकालते हैं। विज्ञापन विभाग लगभग हर बड़े अखबार के संपादकीय विभाग पर हमेशा भारी रहता है। कमर्शियल, पॉलिटिकल एवं सरकारी विज्ञापनों पर टिकी अर्थव्यवस्था के सहारे चलने वाले प्रिंट मीडिया हाउसेस कैसे विश्वसनीय खबरें दे पाएंगे, जबकि यह लोकतंत्र का चौथा स्तंभ न होकर इंडस्ट्री के रूप में खुद को परिवर्तित कर चुके हैं। इस बात का दावा बिल्कुल नहीं है कि सभी अखबार विश्वसनीय नहीं रहें। लेकिन अधिकांश पर सवालिया निशान है।

जहां तक वेब मीडिया की विश्वसनीयता का सवाल है कुछ अच्छे स्टार्टअप्स भी इन दिनों मैदान में है जो इस बात का पूरा ध्यान रख रहें है कि खबर विस्तृत एवं तथ्यात्मक हो। पूरा खेल टाइमिंग का नहीं है क्योंकि चुनौती विश्वसनियता बनाने की है। जो डिजिटल मीडिया टाइमिंग को लेकर आगे बढ़ रहे हैं वो रेस से बाहर होंगे। जो थोड़ा विलंब से मगर विश्वसनीय खबर देगा वही जीतेगा। विलंब भी कितना होगा कुछ मिनटो का, प्रिंट के मुकाबले यह विलंब कुछ भी नहीं।

निश्चित तौर पर आने वाला समय बड़े बदलाव का है और यह बदलाव लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को भी बदलेगा और हमारे ज्ञान के संसार को भी। संभव है अखबार डिजिटल के रूप में नया जन्म लें और अपनी विरासत को बचाए रखें और लोकतंत्र को भी नया रूप दे।

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