रायपुर : कैंसर के इलाज के लिए निजी अस्पताल में भर्ती महिला की जान आरक्षक ने अपना दुर्लभ ‘ बांबे ब्लड ग्रुप ’ देकर बचाई . यह ब्लड ग्रुप बहुत कम लोगो का होता है. जानकारी के मुताबिक लगभग एक प्रतिशत लोगो का ब्लड ग्रुप ही इस प्रकार का होता है.
दरअसल राजधानी के निजी अस्पताल रामकृष्ण केयर हॉस्पिटल में भिलाई निवासी कुंती के कैंसर का इलाज चल रहा था, लेकिन उसका ब्लड ग्रुप दुर्लभ होने की वजह से इलाज में दिक्कत आ रही थी . ब्लड डोनर फाउंडेशन ने एक घंटे में ही ब्लड डोनर अमित बंजारे की मदद लेकर महिला की जान बचाई.
ब्लड डोनर अमित महासमुंद में पदस्थ पुलिस आरक्षक है. विधानसभा में ड्यूटी लगी होने के बाद भी आरक्षक तुरंत छुट्टी लेकर हॉस्पिटल पंहुचा और रक्तदान करके महिला की जान बचाई. पीड़िता की मदद करने में छत्तीसगढ़ ब्लड डोनर फाउंडेशन के सदस्य कीर्ति कुमार , सतीश ठाकुर , अमितेश गर्ग , विकास जायसवाल , श्रद्धा साहू ने भी अहम् भूमिका निभाई.
क्या होता है बांबे ब्लड ग्रुप
बांबे ब्लड ग्रुप की खोज पहली बार 1952 में मुम्बई में डॉक्टर वाई . ऍम . भेड़े ने की थी . प्रत्येक लाल कोशिका की सतह पर एंटीजन होता है, जो यह निर्धारित करने में मदद करता है की वह किस समूह से सम्बंधित है. बांबे ब्लड ग्रुप जिसे hh भी कहा जाता है .एबी ब्लड ग्रुप में ए और बी एंटीजन मिलते है. लेकिन एच एच या बांबे ब्लड ग्रुप में कोई एंटीजन नही मिलता . इसलिए यह ब्लड ग्रुप दुर्लभ माना जाता है.