CORONA EFFECT | बदइंतजामी के बीच घर जाने को हजारों लोग उमड़े, जिम्मेदार कौन राज्य की सरकार या केंद्र की सरकार ?

इकराम नवी

भारत: लॉकडाउन के चौथे दिन शनिवार को देशभर में मजदूरों का अपने-अपने घर के लिए पलायन एक बड़ी चुनौती बनकर सामने दिखा. ख़बरें विचलित कर देने वाली आ रही है. लोग रोज़गार को लेकर परेशान है और पलायन को मज़बूर है. लाखों लोग सड़कों पर हैं. उनके पास न अन्न का दाना है न पीने का पानी.

लगभग सभी दिहाड़ी करने वाले मज़दूर है. ये देश के वो मज़दूर है जो हमारी रिड की हड्डी है. दिल्ली-एनसीआर का हाल सबसे बुरा है, जहां मजदूर, रिक्शा चालक और फैक्ट्री कर्मचारी अपने अपने गांव की ओर लौटने के लिए हजारों की तादाद में निकल पड़े हैं. हालांकि सिर्फ दिल्ली-एनसीआर ही नहीं बल्कि देश के दूसरे छोटे बड़े शहरों से भी लोगों का पलायन यूं ही जारी है. चाहे वो कानपुर हो, सोनीपत हो या फिर सिरसा या आगर मालवा.इन सभी के सामने एक ही बात है यहाँ रहे तो भूखे मरेंगे इसलिए चलना होगा.

लोग ये नहीं सोच रहें है की उनका गांव कितना दूर है. बस निकल पड़े है कोई  600 KM दूर अपने गाँव जा रहा है, रास्ते बंद हैं, बसें बंद हैं, ट्रेन बंद हैं…फिर भी चल पड़े हैं पांव. ऐसे एक नहीं हजारों हजार मजदूर हैं. कोई पैदल पटना निकल पड़ा है, कोई कदमों से नाप लेना चाहता है समस्तीपुर की दूरी, कोई जाना चाहता है गोरखपुर, झांसी बहराइच, बलिया बलरामपुर.

अब सवाल उठने का समय है. क्या लॉक डाउन से पहले सरकार की कोई तैयारी थी इन गरीबों के लिए? या ये भी नोटबंदी की तरह आधी रत को लिया गया गलत निर्णय साबित होगा?  इन मज़दूरों, गरीबों का क्या होगा जो सड़क पर हैं? सरकारी दावे कितने सच्चे है? देश के नीति नियंता इन मजदूरों को समझा क्यों नहीं पा रहे हैं कि ये जहां हैं वहीं रहें? इनके दिलों में सरकारें ये भरोसा क्यों नहीं जगा पा रही हैं कि इनके खाने पीने की व्यवस्थाएं हर हाल में होंगी?

सवालों की फेहरिश्त और भी लम्बी है. मगर जवाब नहीं है. जिम्मेदार कौन राज्य की सरकार या केंद्र की सरकार? अब देखना ये है की  भगवान् भरोसे छोड़े गए ये नागरिक खुद को कैसे सम्भालतें है… या सरकार इनकी कोई सुध लेगी.

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