COVID EFFECT | कोरोना वायरस के कारण पंडितों का घर चलाना हुआ मुश्किल, किसी को घर से निकाला तो किसी को उधार लेकर भरना पड़ा राशन, पंडितों की दुर्दशा की कहानी, उनकी ही जुबानी…

मीनल दीवान

रायपुर: मंदिरों में पूजा-पाठ कर घर चलाने वाले पंडितों की कोरोनाकाल में दुर्दशा हो रही है। कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए लोग पंडितों को अपने घर बुलाकर पूजा, हवन और कथा कराने से भी झिझक रहे हैं। ऐसे में पंडितोंके सामने रोजी-रोटी चलाना बेहद मुश्किल हो गया है। इनमें अधिकांश के पास राशन कार्ड भी नहीं है। बार-बार लाॅकडाउन होने की वजह से मंदिरों में चढ़ने वाले चढावे भी कम हो गए हैं। अधिकांश मंदिर के पुजारियों का घर मंदिर में मिलने वाले चढावे से ही चलता है। वहीं कुछ पंडित ऐसे भी हैं जो केवल कथा, अनुष्ठान और पूजा-पाठ कर अपना गुजर-बसर करते थे, उनके सामने भी जीवनयापन का संकट पैदा हो गया है। आइए जानते हैं पंडितों की दुर्दश की कहानी, उनकी ही जुबानी-

दारू दुकान से कोरोना नहीं फैलता, पूजा-पाठ से फैलता है

महामाया मंदिर में पुजारी मनोज शुक्ला कहते हैं कि सरकार ने कोरोना वायरस को रोकने जो कदम उठाए वो सराहनीय है। पर उनकी एक बात समझ में नहीं आती। उन्होंने शराब दुकान के लिए कोई नियम-कायदे नहीं बनाए हैं, वहां कोई संक्रमित होता है तो उसकी जिम्मेदारी सरकार की है पर यदि कोई मंदिर में संक्रमित होता है तो उसकी जिम्मेदारी मंदिर की होगी, ऐसा क्यों? मार्च से हुए लाॅकडाउन में पंडितों की हालत दयनीय हो चुकी है। चूंकि मैं मंदिर ट्रस्ट से जुड़ा हूं तो मेरी तनख्वाह बनी हुई है पर बावजूद इसके मैं कई अनुष्ठानों में जाता था, जहां मेरे साथ 7-8 पंडित सहयोगी भी रहते थे, उनकी हालत बेहद खराब हो गयी है। सरकार पंडितों की सुध ही नहीं लेती। नवरात्र के दौरान देवी दरबार बंद थे जिसके कारण चढोत्तरी और आरती में जो रूपया चढता था, वो भी नहीं मिला। अब तो लोग कोरोना के कारण पूजा-पाठ के लिए नहीं बुलाते, ये अकेले हमारी स्थिति नहीं है, पूजा-पाठ करने वाले हर पंडितों की यही कहानी है।

मंदिर में हुई भक्तों की कमी, जीवनयापन का संकट

शीतला मंदिर कुकरी पारा में पुजारी मोहित पांडे कहते हैं कि नवराज में माता का दरबार पूरा सजा रहता था। आरती और दान पेटी में चढ़े रूपयों से ही हमारा घर चलता था। पर जब से कोरोना वायरस की धमक छत्तीसगढ और खासतौर पर रायपुर में हुई है, भक्तों की संख्या भी कम हो गयी है। बार-बार लाॅकडाउन होने की वजह से मंदिर की कमाई बेहद कम हो गयी है। पहले जहां दिनभर में कई भक्त माता के दर्शन को आते थे, वहीं अब केवल 5-6 लोग की दर्शन करने आते हैं। ऐसे में हमारे सामने घर चलाना बेहद मुश्किल हो गया है। सावन का महीना पूरा बीत गया, अभिषेक कराने भी बहुत कम लोगों ने घर पर बुलाया। यदि ऐसा रहा तो पंडितों के सामने जीवनयापन करने का संकट पैदा हो जाएगा।

मकान मालिक ने घर से निकाला, हमारी सुध कौन लेगा

पंडित रत्नेश शुक्ला कहते हैं मैं किसी मंदिर में पुजारी नहीं हूं, मेरा घर केवल कथाएं कहने और व्रत-अनुष्ठान की पूजा करने से ही चलता था। कोरोना काल के पहले 15 हजार तक की कमाई हो जाती थी। पर मार्च के बाद मकान का किराया भी नहीं दे पाया इसलिए मकान मालिक ने घर से निकाल दिया। अब जिस मकान में रहना होता है, वहां भी घर खाली करने की कई बार धमकी मिल चुकी है। घर के राशन के लिए भी दोस्त से उधार लेना पड़ा। चूंकि पंडित का दर्जा सबसे उपर होता है तो कोई दूसरा काम भी नहीं कर सकता। जो जमा-पूंजी थी, वो पूरी खर्च हो गयी, अब आगे घर कैसे चलेगा इसका डर सताता रहता है। जिन लोगों ने गृह प्रवेश या दूसरे अनुष्ठानों की बुकिंग करायी थी, वो भी कैंसल कर दी। आखिर हमारी सुध कौन लेगा?

कोरोना के डर से जजमान घर नहीं बुलाते, घर चलाना ही सबसे बड़ी चुनौती

आरडीए काॅलोनी रायपुर में हनुमान मंदिर के पुजारी सुशील तिवारी का कहना है कि कोरोना की डर की वजह से कोई भी श्रद्धालु अब हमें अपने घर नहीं बुलाते। वहीं कुछ लोगों के घर पूजा-पाठ तो हमने खुद ही कोरोना की वजह से कैंसल कर दिया। हर साल हनुमान जयंती के रोज खूब चढावा चढ़ता था पर हनुमान जयंती के दिन लाॅकडाउन हुआ था तो चढावा कहां से मिलता। गृह प्रवेश, विवाह और अन्य आयोजनों के लिए भी इस बार जजमानों ने नहीं बुलाया, हमारी कमाई तो हुई ही नहीं। मंदिरों में भक्तों के न आने से आजीविका के साधन भी बंद हो गए हैं। हमारा नाम गरीबों को मिलने वाली सुविधाओं और मदद की सूची में भी नहीं है, ऐसे में हम पर चैतरफा मार पड़ी है। सामान्य वर्ग का होने के कारण किसी भी योजना का लाभ नहीं मिलता। हमारे लिए तो घर चलाना ही सबसे बड़ी चुनौती बन गयी है। वे पंडित जो लोगों को भगवान से जोड़ने का काम करते हैं, आज उनके सामने ही अंधेरा छाया हुआ है।

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