RAIPUR | दिल्ली से लौट आई राज्यपाल अनुसूईया उइके, कहा- राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और गृह मंत्री से चर्चा की, सरकार से चर्चा के बाद होगा आरक्षण विधेयक पर फैसला

रायपुर: छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसूईया उइके दिल्ली से लौट आई हैं। रायपुर में उन्होंने कहा, इस प्रवास के दौरान राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति से उनकी मुलाकात हुई है। केंद्रीय गृह मंत्री से भी चर्चा की है। उनको प्रदेश के सभी विषयों की जानकारी दी है। उन्होंने राज्य सरकार को कुछ सवाल भेजे हैं। उसका जवाब आने के बाद भी आरक्षण संशोधन विधेयकों पर विचार करुंगी।

राज्यपाल अनुसूईया उइके ने कहा, इस दौरे में राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति और गृहमंत्री से सौजन्य मुलाकात हुई। प्रधानमंत्री बहुत व्यस्त थे इसलिए मुलाकात नहीं हो पाई। ऐसी मुलाकातों में अनौपचारिक चर्चा होती है। प्रदेश सहित अन्य गतिविधियों के बारे में चर्चा की गई। राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति को छत्तीसगढ़ आने का न्योता दिया है। साइंस कॉलेज में पूर्व छात्रों का कार्यक्रम है। उसके लिए राष्ट्रपति को निमंत्रित करने का मुझसे आग्रह किया गया था। वह निमंत्रण दिया है।

एक एमिटी विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह और एक मध्य प्रदेश के आयोजन के लिए भी आग्रह किया है। छत्तीसगढ़ के आरक्षण संशोधन विधेयकों के बारे में पूछे जाने पर राज्यपाल ने कहा, प्रदेश की सारी गतिविधियों पर चर्चा की गई। ये विषय भी मैंने बताया। राज्यपाल ने कहा, अपने विधि सलाहकार की सलाह पर उन्होंने छत्तीसगढ़ सरकार को 10 प्रश्न भेजा है। सरकार की ओर से उसका जवाब आने के बाद उस पर विचार करूंगी।

राज्यपाल ने सरकार से जटिल सवाल पूछे हैं

  • क्या इस विधेयक को पारित करने से पहले अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति का कोई डाटा जुटाया गया था? अगर जुटाया गया था तो उसका विवरण।
  • 1992 में आये इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ मामले में उच्चतम न्यायालय ने आरक्षित वर्गों के लिए आरक्षण 50% से अधिक करने के लिए विशेष एवं बाध्यकारी परिस्थितियों की शर्त लगाई थी। उस विशेष और बाध्यकारी परिस्थितियों से संबंधित विवरण क्या है।
  • उच्च न्यायालय में चल रहे मामले में सरकार ने आठ सारणी दी थी। उनको देखने के बाद न्यायालय का कहना था, ऐसा कोई विशेष प्रकरण निर्मित नहीं किया गया है जिससे आरक्षण की सीमा को 50% से अधिक किया जाए। ऐसे में अब राज्य के सामने ऐसी क्या परिस्थिति पैदा हो गई जिससे आरक्षण की सीमा 50% से अधिक की जा रही है।
  • सरकार यह भी बताये कि प्रदेश के अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग किस प्रकार से समाज के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ों की श्रेणी में आते हैं।
  • आरक्षण पर चर्चा के दौरान मंत्रिमंडल के सामने तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र में 50% से अधिक आरक्षण का उदाहरण रखा गया था। उन तीनों राज्यों ने तो आरक्षण बढ़ाने से पहले आयोग का गठन कर उसका परीक्षण कराया था। छत्तीसगढ़ ने भी ऐसी किसी कमेटी अथवा आयोग का गठन किया हो तो उसकी रिपोर्ट पेश करे।
  • क्वांटिफायबल डाटा आयोग की रिपोर्ट भी मांगी है।
  • विधेयक के लिए विधि विभाग का सरकार को मिली सलाह की जानकारी मांगी गई है। राजभवन में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने के लिए बने कानून में सामान्य वर्ग के गरीबों के आरक्षण की व्यवस्था पर भी सवाल उठाए हैं। तर्क है कि उसके लिए अलग विधेयक पारित किया जाना चाहिए था।
  • अनुसूचित जाति और जनजाति के व्यक्ति सरकारी सेवाओं में चयनित क्यों नहीं हो पा रहे हैं।
  • सरकार ने आरक्षण का आधार अनुसूचित जाति और जनजाति के दावों को बताया है। वहीं संविधान का अनुच्छेद 335 कहता है कि सरकारी सेवाओं में नियुक्तियां करते समय अनुसूचित जाति और जनजाति समाज के दावों का प्रशासन की दक्षता बनाये रखने की संगति के अनुसार ध्यान रखा जाएगा। सरकार यह बताये कि इतना आरक्षण लागू करने से प्रशासन की दक्षता पर क्या असर पड़ेगा इसका कहीं कोई सर्वे कराया गया है?
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