World | मुस्लिम महिलाएं आज भी ‘खतना’ जैसी प्रथा की हैं शिकार, अब इसके खिलाफ इस शख्स ने उठाई आवाज, कहा- ये प्रथा नहीं अपराध है

नई दिल्लीः दुनियाभर के कई देशों में मुस्लिम महिलाओं के ‘खतना’ पर बैन लगा हुआ है। इसके बावजूद यह प्रथा आज भी जारी है। बता दें, रूढ़िवादी मुसलमानों के बीच महिलाओं को तब तक ‘अशुद्ध’ और शादी के लिए तैयार नहीं माना जाता है, जब तक उनका खतना नहीं हो जाता। हालांकि कानूनी तौर पर खतना अपराध है, इसके बाद भी यह दर्दनाक परंपरा आज भी चल रही है। कानून लोगों की मानसिकता को नहीं बदल पाया है। लोग इसे पारंपरिक प्रथा मानते हैं जिसे बेटियों की शादी के लिए निभाना जरूरी है।

भारत में साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इसपर गंभीर टिप्पणी की थी। कोर्ट ने कहा था कि महिलाओं का जीवन केवल शादी और पति के लिए नहीं होता है। कोर्ट ने महिलाओं के खतने वाली प्रथा को निजता के अधिकार का उल्लघंन बताया था। कोर्ट ने सवाल किया था कि धर्म के नाम पर कोई किसी महिला के यौन अंग कैसे छू सकता है? कोर्ट ने कहा था, ”यौन अंगों को काटना महिलाओं की गरिमा और सम्मान के खिलाफ है।”

पोप फ्रांसिस ने क्या कहा?
यह मामला एक बार फिर सुर्खियों में है। इस प्रथा पर बोलते हुए पोप फ्रांसिस ने रविवार को कहा कि महिलाओं का खतना किए जाने की प्रथा ‘अपराध’ है। समाज की भलाई के लिए महिलाओं के अधिकारों, समानता और अवसर की लड़ाई जारी रहनी चाहिए। पोप ने इस प्रथा का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘क्या आज हम दुनिया में युवतियों के अंतर्मन की त्रासदी को नहीं रोक सकते? यह भयावह है कि आज भी एक प्रथा है, जिसे मानवता रोक नहीं पा रही है। यह एक अपराध है। यह एक आपराधिक कृत्य है।’’ फ्रांसिस बहरीन से वापस लौटते समय महिलाओं के अधिकार के बारे में एक सवाल का जवाब दे रहे थे। उन्होंने कहा कि समाज की भलाई के लिए महिलाओं के अधिकारों, समानता और अवसर की लड़ाई जारी रहनी चाहिए।

इन देशों में आज भी होता है खतना
मिस्र: साल 2008 में मिस्र में खतना पर पूरी तरह से बैन लगा दिया गया था। लेकिन आज भी यह खतरनाक प्रथा बदस्तूर जारी है। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस देश में खतना के लिए कड़ी सजा का प्रावधान है लेकिन इसके बावजूद मिस्र उन देशों में शामिल है जहां महिलाओं के खतना करने की दर सबसे अधिक है। मिस्र के रूढ़िवादी समुदाओं खास कर ग्रामीण मुस्लिम इलाकों में रहने वाले लोग मानते हैं कि जब तक महिलाओं के जननांग का एक हिस्सा काट नहीं दिया जाता तब तक उन्हें शादी के काबिल नहीं माना जाता है। इसके अलावा कुछ लोगों का मानना है कि इससे लड़कियों में सेक्स के प्रति आकर्षण कम हो जाता है।

मामली: माली में साल 2006 में 15-19 साल की उम्र की 85.2 फीदसी महिलाएं इस प्रक्रिया से गुजरीं थीं। माली में खतना को धार्मिक रूप से जरूरी माना जाता है।

एरिट्रिया: यहां साल 2007 तक 89 फीसदी महिलाओं की खतना हुई थी, लेकिन मार्च 2007 में सरकार ने इसके खिलाफ कानून बना दिया। जिसमें जुर्माने से लेकर कैद तक की सजा का प्रावधान है। पर यहां भी खतना को धार्मिक रूप से जरूरी माना जाता है।

सुडान: साल 2020 में यहां खतना को अपराध की श्रेणी में रखा गया। जिसके बाद यहां के महिला अधिकार संगठनों का कहना था कि इस सजा से इस प्रथा को खत्म करने में मदद मिलेगी। हालांकि इन संगठनों का यह भी कहना था कि अभी भी लोगों की मानसिकता को बदलना आसान नहीं है, क्योंकि लोग इसे एक ऐसी पारंपरिक प्रथा मामते हैं, जिसे बेटियों की शादी के लिए निभाना जरूरी है।

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