BOLLYWOOD | स्कैम मास्टर हर्षद मेहता की कहानी कहती है ‘द बिग बुल’, न अभिषेक इम्प्रेस कर पाए और न ही पटकथा, जानिए यह फिल्म आपको देखनी चाहिए या नहीं

मुुंबई: अभिषेक बच्चन की द बिग बुल की आलोचना करने का सबसे आसान तरीका यहीं है कि इसकी तुलना प्रतीक गांधी की स्कैम 1992 से कर दें और फिर हर मामले में इस नई फिल्म को फ्लॉप बता दें। लेकिन ये आसान तरीका मेकर्स और कलाकार की मेहनत संग अन्याय कर जाएगा। इसलिए तुलना को छोड़ पहलुओं पर बात करते हैं और समझते हैं कि कहां चूक हुई और कहां पर ये फिल्म मजबूत लगी।

आजाद भारत का सबसे बड़ा स्टॉक मार्केट घोटाला, जिसे हर्षद मेहता स्कैम भी कह सकते हैं। इतनी किताबें आ गईं, यूट्यूब वीडियो देख लीं कि अब नॉलेज की कोई कमी नहीं है। सभी जानते हैं कि ये घोटाला कैसे हुआ, कौन सी वो कमजोर कड़ियां थीं जिसे हर्षद मेहता ने इस्तेमाल किया। 10 एपिसोड की सीरीज देखने के बाद वैसे भी स्कोप कम बचता है, तो बिग बुल के सामने चुनौतियां काफी ज्यादा थीं। फिल्म में सभी को काल्पनिक नाम दिए गए हैं। हर्षद मेहता, हेमंत शाह (अभिषेक बच्चन) बन गए हैं, राम जेठमलानी की जगह अशोक मिर्चनदानी (राम कपूर) को मिल गई है, सुचेता दलाल को मीरा राव (इलियाना डीक्रूज) बता दिया गया है।

अब नाम जरूर अलग कर दिए गए, लेकिन कहानी वहीं है, सबसे बड़े घोटाले की। हर्षद मेहता का स्ट्रगल दिखाया जाएगा, उसके लालच के बारे में बताया जाएगा, उसकी वो सीक्रेट रणनीति की भी जानकारी मिल जाएगी.। बस देखना तो ये है कि डायरेक्टर कूकी गुलाटी ने इन तमाम पहलुओं को किस अंदाज में दर्शकों के सामने परोसा है।

बॉलीवुड फिल्म और ओटीटी की दुनिया में यहीं सबसे बड़ा फर्क है कि एक जगह मसाला परोसा जाता है तो दूसरी जगह आपको वास्तविकता के दर्शन हो जाते हैं। बिग बुल ने हर्षद मेहता की कहानी तो बताई है, लेकिन ढेर सारा मिर्च-मसाला लगा के। अगर रियलिटी पर थोड़ा बहुत मसाले का तड़का लगा देते, तो फिर भी बात समझ आ जाती, लेकिन यहां तो उल्टा हो गया। जोर सारा मिर्च-मसाला पर रहा है, कोई शिकायत ना कर दे, इससिए रियलिटी का तड़का ऊपर से डाल दिया है। बस यहीं बात निराश कर गई।

बिग बुल के मेकर्स ने दर्शकों के साथ एक खेल भी कर दिया है। इस फिल्म को दो हिस्सों में बांटा गया है। पहले पार्ट में हर्षद मेहता चोर है, लेकिन दूसरे पार्ट के आते ही वो मसीहा बन जाता है। पहले पार्ट में उसने खूब पैसा कमाया, लेकिन दूसरे पार्ट में उसने आम आदमी की जेब भरी। मेकर्स ने अपनी तरफ से साफ कर दिया है कि हम किसी भी तरह का रिस्क नहीं लेने वाले हैं। आप फैसला कर लीजिए हर्षद मेहता चोर था या एक मसीहा। सवाल तो दर्शक भी कर सकते हैं- हम फिर ये फिल्म क्यों देखें?

एक्टिंग की बात कर लेते हैं। पूरा मैदान अभिषेक बच्चन के लिए खुला है। उन्हीं को चैंके-छक्के लगाने हैं, उन्हीं को अपने दम पर इस इनिंग्स को आगे बढ़ाना है। काम ठीक कर गए हैं, गुजराती बोलना सीख लेते तो बेहतर रहता। उन्होंने बस उतनी गुजराती बोली है, जितनी कोई नॉन गुजराती आदमी गुजराती बनने की मिमिक्री करता है। बीच-बीच में उनकी रावण वाली हंसी भी ये अहसास करवा जाती है कि हां हम बॉलीवुड फिल्म ही देख रहे हैं और अभिषेक बच्चन एक एक्टर हैं हर्षद मेहता नहीं।

हर्षद मेहता के भाई के रोल में सोहम शाह फिट नहीं बैठ पाए हैं। असल में तो कहा जाता है कि अश्विन मेहता एक वकील बन गए थे और कई केस में अपने भाई को बचाने के लिए लड़ते रहे। लेकिन बिग बुल में आपको सिर्फ बेचारगी देखने को मिलेगी। एक कमजोर भाई जो सिर्फ खुद को बचाने की कोशिश करता है। इलियाना डीक्रूज की बात करें तो उन्हें उनके करियर का सबसे बड़ा रोल दिया गया है। ग्लैम डॉल बनने के बजाय मजबूत रोल मिला है। रिजल्ट- निराश कर गईं. उनको देख पत्रकार वाली फीलिंग नहीं आई। राम कपूर, निकिता दत्ता, सौरभ शुक्ला, सुप्रिया पाठक…ये सभी सिर्फ एक्टिंग करते रह गए, असल किरदार पीछे छूट गए।

अगर बिग बुल को स्कैम 1992 से पहले रिलीज करते तो क्या बात कुछ और होती? शायद हां, लेकिन फिर भी ये एक टिपिकल बॉलीवुड फिल्म ही रह जाती जहां पर सिर्फ और सिर्फ मसाला मिलता, कमोलिका वाली साजिश होती और फिल्म खत्म हो जाती।

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