रायपुर: एक पिता का जुनून था कि वह अपनी बेटियों को सीखाने के लिए खुद ही उनका गुरू बन जाता है। हम दंगल फिल्म की बात नहीं कर रहे पर कहानी उस से मिलती जुलती ही है। यहाँ हीरो महावीर फोगाट नहीं बल्कि विमल बेहरा है। पेशे चाय बेचने वाले विमल ने घंटों मैदान में पसीना बहाते हुए अपनी दो बेटियों और एक बेटे को एथलीट बना दिया है।
विमल बेहरा मूलतः भाटागांव चैक के रहने वाले हैं। एक छोटी सी चाय की दुकान चलाते हैं। वह कभी एथलीट नहीं रहे पर 47 साल की उम्र में उन्होंने दौड़ना शुरू किया और दो मेडल उनके नाम पर हैं। विमल ने देखा बच्चियों की भी खेल में रूचि है पर पैसे इतने थे ही नहीं कि उन्हें कोचिंग दिला सकें। बस फिर क्या था विमल ने कमर कसी और खुद ही बच्चियों के गुरू बन गए।
वे घंटे अपने तीनों बच्चों के साथ मैदान में पसीना बहाते हैं। पहले उन्होंने वाॅलीवाॅल की ट्रेनिंग देनी शुरू की। सुबह-शाम तीन-तीन घंटे वे अपने बच्चों के साथ मैदान में बीताते हैं। उनकी बड़ी बेटी मधुमिता ने 2013 में वाॅलीवाॅल खेला लेकिन वह एथलीट बनना चाहती थी तो उसने रनिंग शुरू कर दी। दूसरी बेटी नवनिता भी एथलिट है और लाॅन्ग जंप में कई पदक जीत चुकी है।
विमल ने बताया कि एथलीट के लिए अच्छी खुराक की जरूरत होती है पर हमारे पास पैसे नहीं है। प्रोटीन के लिए मैं बच्चो को चावल का पेज पिला देता हूं। न मैं फल खिला सकता हूं और न ही दूध का खर्च उठा सकता हूं। पर इन तमाम रूकावटों के बाद तीनों बच्चे लगन से अपने सपने को हकीकत में बदलने जुटे हुए हैं।